दिव्यपथ संस्थान, अमरकंटक (म.प्र.)
प्रकाशक – मध्यस्थ दर्शन
(सहअस्तित्ववाद)
— प्रणेता एवं लेखक श्री ए.नागराज
स्थापना – १९७९
मध्यस्थ दर्शन जानकारी हेतु प्रामाणिक वेबसैट
WWW.MADHYASTH.ORG
{ पृष्ठभूमि }

कर्नाटक प्रांत के जन्में श्री अग्रहार नागराज ने सन १९५०-१९७५ ‘अज्ञात को ज्ञात’ करने अमरकंटक (म.प्र.) में साधना किया | 

साधना-समाधि-संयम विधि से उन्हें सम्पूर्ण अस्तित्व का दर्शन हुआ, चैतन्य वस्तु रूपी परमाणु ‘जीवन’ के सम्पूर्ण स्वरूप का ज्ञान हुआ | 

उन्हें यथार्थता, वास्तविकता एवं सत्यता अंतिम सत्य के रूप में समझ आया, अस्तित्व में वे अनुभव पूर्वक “जागृत” हुए |  जिसे मानव के सम्मुख उन्होंने  एक नए दर्शन – ‘मध्यस्थ दर्शन’ के रूप में प्रस्तुत किया है |

इस दर्शन में मानव के जीने के सभी आयाम – व्यवसाय, व्यवहार, विचार, अनुभव तथा जीने के सभी स्थिति: व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र अंतरराष्ट्र से सम्बंधित सभी प्रश्नों के समाधान सार्वभौम रूप में प्राप्त हैं |  

मध्यस्थ दर्शन के लोकव्यापीकरण एवं स्थापना हेतु श्री नागराजजी ने १९७९ में ‘दिव्य पथ संस्थान’ की स्थापना की | जागृति पूर्ण चैतन्य जीवन ही ‘दिव्य’ जीवन है, इसी के अर्थ में ‘दिव्य पथ संस्थान’ है |

२०१६ में उनके शरीर शांत होने पर्यंत यह संस्था उन्ही के मार्गदर्शन में कार्यरत था |

  

“जीवन विद्या एक परिचय” पढ़ें
दिव्यपथ संस्थान, अमरकंटक (म.प्र.)

दिव्य पथ संस्थान ‘जीवन विद्या प्रकाशन’ नाम से मध्यस्थ दर्शन वाङ्मय का प्रकाशन करता है |

    पूज्य श्री नागराजजी के शरीर काल उपरांत दिव्यपथ संस्थान के निम्न कर्तव्य हैं :
  1. श्री नागराजजी के पुस्तक तथा लेखों का संरक्षण, प्रकाशन एवं वितरण
  2. मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन तथा शोध के लिए गोष्ठियों का आयोजन
  3. शिक्षा के मानवीयकरण के लिए कार्य करन
  4. गुरु पूर्णिमा तथा अनुभव शिविर (१४ जनवरी) का उत्सव योजना
  5. जीवन विद्या सम्मेलन के लिए आवश्यकता अनुसार प्रबंधन सहयोग
  6. भारतीय शासन के अधिकृत आवश्यक लीगल कंप्लायंस

-कार्य कारिणी समिति

{ दिव्य पथ संस्थान योजना }

जीवन विद्या योजना:

मध्यस्थ दर्शन ‘जीवन विद्या योजना’ द्वारा लोकव्यापीकरण किया जाता है | इसके देश-विदेश में ‘जीवन विद्या परिचयात्मक’ शिविर होते हैं | साथ में अंश कालीन तथा पूर्ण कालीन अध्ययन शिविर होते हैं |

शिक्षा संस्कार योजना:

यह ‘चेतना विकास मूल्य शिक्षा’ द्वारा शिक्षा के मानवीयकरण हेतु प्रस्तुत है | इसका ‘मूल्य शिक्षा’ के रूप में शिक्षा में विभिन्न आयामों में प्रयोग हो रहा है |

परिवार मूलक ग्राम स्वराज्य व्यवस्था:

मानव जाति एक, मानव धर्म एक के प्रतिपादन के तहत अखंड मानव समाज तथा सार्वभौम व्यवस्था हेतु योजना है |

‘जीवन विद्या योजना’ पढ़ें पढ़ें

{ वाङ्मय डाउनलोड }

मध्यस्थ  दर्शन वांग्मय चार दर्शन, तीन वाद तीन शास्त्र तथा  संविधान के रूप में  प्रकाशित है |

मध्यस्थ दर्शन: मानव व्यवहार दर्शन, कर्म दर्शन, अभ्यास दर्शन, अनुभव दर्शन (manav vyavhar darshan, karm darshan, abhyas darshan, anubhav darshan)

सहअस्तित्ववाद: समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद (samadhanatmak bhoutikvad, vyavharatmak janvad, anubhavatmak adhyatmvad)

शास्त्र : व्यवहारवादी समाजशास्त्र, आवर्तनशील अर्थशास्त्र, मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान , मानवीय संविधान (vyavharvai samajshastra, avartansheel arthshastra, manava sanchetanavadi manovigyan, manveey samvidhan)

मूलप्रति वाङ्मय पढ़ें
{ ‘जीवन विद्या’ गतिविधियाँ: जानकारी }

‘जीवन विद्या’ ‘मध्यस्थ दर्शन’ के प्रणेता श्रद्धेय श्री ए.नागराजजी के संपर्क में आकर तथा दर्शन से प्रेरित अनेकों व्यक्ति, परिवार, संस्थाएं तथा शासन संस्थाएं देश-विदेश में कार्यरत हैं | वे सब अपने अपने जिम्मेदारी पर क्रियाशील हैं | 

इनके बारे जानकारी कुछ ‘परिचयात्मक वेबसाइट’ पर उपलब्ध हैं, जो एक विद्यार्थी समूह द्वारा स्वतंत्र रूप में संचालित है | 

ऐसे साईट, Facebook,सोशल मीडिया, WhatsApp, Telegram, YouTube इत्यादि channel की जिम्मेदारी सम्बंधित व्यक्ति, परिवार, संस्थानों की ही है |

परिचयात्मक वेबसैट (स्वतंत्र)
Copyright

 

दिव्यपथ संस्थान मध्यस्थ दर्शन वाङ्मय का प्रकाशक है | सर्वाधिकार दिव्यपथ संस्थान के पास सुरक्षित |  

वाङ्मय के किसी भी प्रकाशित विधा के उपयोग से पूर्व दिव्यपथ संस्थान से लिखित अनुमति अपेक्षित है, आवश्यक है  | 

‘मध्यस्थ दर्शन / जीवन विद्या’ के अवधारणाओं का प्रयोग करते समय मूल ग्रन्थ का उद्धरण देना नैतिक जिम्मेदारी बनता है |

इस दर्शन एवं संस्था का कोई भी व्यापारिक अथवा  राजनैतिक  उद्देश्य नहीं है |  यह कॉपीराइट अपेक्षा का उद्देश्य मात्र वर्तमान वस्तु स्थिति में सुरक्षा के अर्थ में है |

यह मात्र सर्व शुभ के अर्थ में हैं |

The Madhyasth Darshan (Coexistential Philosophy) Literature is published by ‘Jeevan Vidya Prakashan’, Divya Path Sansthan, Amarkantak, MP, India. 

मध्यस्थ दर्शन जानकारी हेतु ऑफिसियल वेबसैट
MADHYASTH.ORG
प्रकाशित पुस्तक प्राप्ति
प्रकाशित पुस्तक प्राप्ति

पोस्ट द्वारा प्राप्त करें

दिव्य पथ संस्थान

श्री भजनाश्रम, 

नर्मदा मंदिर के सामने 

अमरकंटक (म.प्र)

स्थापना: १९७९ | म.प्र. पंजी क्र: १००१० 

PAN: AABAD2427J

80G, 12A Approved: Jabalpur/12A/271/12-2/207

पूछताछ

Ph: 94253.44128

info@divya-path.org

राष्ट्रीय संपर्क 

देश भर में जीवन विद्या सम्बंधित संपर्क के लिए लिंक देखें | इनमें प्रत्येक व्यक्ति अपने जिम्मेदारी पर प्रस्तुत होता है 

‘जीवन विद्या’ हेतु देश भर में सम्पर्क सूत्र
कॉन्टेक्ट्स देखें

दिव्य पथ संस्थान, अमरकंटक (म.प्र.)

Hi! Let us know how we can help and we’ll respond shortly.